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श्लोक 3.13.132  |
গ্রাম্য-বার্তা না শুনে, না কহে জিহ্বায
কৃষ্ণ-কথা-পূজাদিতে অষ্ট-প্রহর যায |
ग्राम्य - वार्ता ना शुने, ना कहे जिह्वाय ।
कृष्ण - कथा - पूजादिते अष्ट - प्रहर याय ॥132॥ |
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अनुवाद |
रघुनाथ भट्ट इस भौतिक जगत की कोई भी बात न तो सुनते थे और न ही इसके बारे में बोलते थे। वे केवल कृष्ण की चर्चा करते थे और दिन-रात ईश्वर की पूजा करते थे। |
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