মহাপ্রভুর শ্রী-হস্তে অল্প না আইসে
এক-এক পাতে পঞ্চ-জনার ভক্ষ্য পরিবেশে
महाप्रभुर श्री - हस्ते अल्प ना आइसे ।
एक - एक पाते पञ्च - जनार भक्ष्य परिवेशे ॥82॥
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभुजी थोड़ी मात्रा में प्रसाद ग्रहण करने के आदि नहीं थे। इसलिए प्रत्येक पत्तल में वे इतना भोजन रख देते थे, जिसे कम से कम पाँच व्यक्ति खा सकें।