डोर, कड़ार, प्रसाद, वस्त्र अङ्गे दिला ।
वालुकार गर्न करि’ ताहे शोयाइला ॥66॥
अनुवाद
बालू में एक गड्ढा खोदकर उसमें हरिदास ठाकुर के शरीर को रखा गया। तत्पश्चात् भगवान् जगन्नाथ का प्रसाद - यथा उनकी रेशमी रस्सियाँ, चन्दन लेप, भोजन तथा वस्त्र - उनके शरीर के ऊपर रखा गया।