श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 11: हरिदास ठाकुर का महाप्रयाण  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  3.11.42 
‘ভকত-বত্সল’ প্রভু, তুমি, মুই ‘ভক্তাভাস’
অবশ্য পূরাবে, প্রভু, মোর এই আশ”
 
 
‘भकत - वत्सल’ प्रभु, तुमि, मुड़ ‘भक्ताभा स’ ।
अवश्य पूराबे, प्रभु, मोर एइ आश” ॥42॥
 
अनुवाद
 
  "प्रभु, आप सदैव अपने भक्तों को प्यार करने वाले हैं। मैं एक नकली भक्त हूँ, फिर भी मेरी इच्छा है कि आप मेरी इच्छा पूरी करें। यही मेरी आशा है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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