श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 11: हरिदास ठाकुर का महाप्रयाण  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  3.11.39 
চরণে ধরি’ কহে হরিদাস, — “না করিহ ‘মাযা’
অবশ্য মো-অধমে, প্রভু, কর এই ‘দযা’
 
 
चरणे धरि’ कहे हरिदास ,_“ना करिह ‘माया’ ।
अवश्य मो - अधमे, प्रभु, कर एइ ‘दया’ ॥39॥
 
अनुवाद
 
  श्री चैतन्य महाप्रभु के चरणों को पकड़कर हरिदास ठाकुर ने कहा, "हे प्रभु, कृपया माया का सृजन न करें। यद्यपि मैं बहुत पतित हूँ, फिर भी आपको मुझ पर अवश्य दया करनी चाहिए!"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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