श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 11: हरिदास ठाकुर का महाप्रयाण  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  3.11.22 
নমস্কার করি’ তেঙ্হো কৈলা নিবেদন
শরীর সুস্থ হয মোর, অসুস্থ বুদ্ধি-মন
नमस्कार क रि’ तेंहो कैला निवेदन ।
शरीर सुस्थ हय मोर, असुस्थ बुद्धि - मन ॥22॥
 
अनुवाद
हरिदास जी ने महाप्रभु को दण्डवत् किया और उत्तर दिया, "मेरा शरीर तो स्वस्थ है, लेकिन मेरा मन और बुद्धि ठीक नहीं हैं।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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