श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 11: हरिदास ठाकुर का महाप्रयाण  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  3.11.18 
গোবিন্দ কহে, — ‘উঠ আসি’ করহ ভোজন’
হরিদাস কহে, — আজি করিমু লঙ্ঘন
गोविन्द कहे , - ‘उठ आ सि’ करह भोज न’ ।
हरिदास कहे , - आजि करिमु लङ्घन ॥18॥
 
अनुवाद
गोविंद ने कहा, "कृपया उठकर अपना महा प्रसाद ग्रहण करें।" हरिदास ठाकुर ने जवाब दिया, "आज मैं उपवास करूँगा।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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