श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 11: हरिदास ठाकुर का महाप्रयाण  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  3.11.13 
এই-মত মহাপ্রভুর সুখে কাল যায
কৃষ্ণের বিরহ-বিকার অঙ্গে নানা হয
एइ - मत महाप्रभुर सुखे काल याय ।
कृष्णेर विरह - विकार अङ्गे नाना हय ॥13॥
 
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु कृष्ण से विरह के कारण अध्यात्मिक लक्षणों को प्रकट करते हुए जगन्नाथपुरी में खुशी से अपने दिन बिता रहे थे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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