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अध्याय 10: श्री चैतन्य महाप्रभु अपने भक्तों से प्रसाद ग्रहण करते हैं
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श्लोक 110
श्लोक
3.10.110
‘অমুক্ এই দিযাছে’ গোবিন্দ করে নিবেদন
‘ধরি’ রাখ’ বলি’ প্রভু না করেন ভক্ষণ
‘अमुकेइ दियाछे’ गोविन्द करे निवेदन ।
‘धरि’ राख’ बलि’ प्रभु ना करेन भक्षण ॥110॥
अनुवाद
गोविंद प्रसाद को श्री चैतन्य महाप्रभु के सामने लाते और कहते, "इसे अमुक भक्त ने दिया है।" किन्तु भगवान वास्तव में उसे खाते नहीं थे। वह केवल इतना ही कहते, "इसे कमरे में रख दो।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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