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श्लोक 3.10.102  |
সঙ্ক্ষেপে কহিলুঙ্ এই পরি-মুণ্ডা-নৃত্য
অদ্যাপিহ গায যাহা চৈতন্যের ভৃত্য |
सङ्क्षेपे कहिलुँ एइ परि - मुण्डा - नृत्य ।
अद्यापिह गाय याहा चैतन्येर भृत्य ॥102॥ |
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अनुवाद |
मैंने यहाँ श्री चैतन्य महाप्रभु के जगन्नाथ मन्दिर के सभा भवन में नृत्य करने का संक्षेप में वर्णन किया है। श्री चैतन्य महाप्रभु के सेवक आज भी इस नृत्य का गुणगान करते हैं। |
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