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श्लोक 3.1.43  |
স্বপ্ন দেখি’ রূপ-গোসাঞি করিলা বিচার
সত্যভামার আজ্ঞা — পৃথক্ নাটক করিবার |
स्वप्न देखि’ रूप - गोसाञि करिला विचार ।
सत्यभामार आज्ञा - पृथक् नाटक करिबार ॥43॥ |
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अनुवाद |
इस स्वप्न के दर्शन के पश्चात श्रील रूप गोस्वामी ने विचार किया, "यही तो सत्यभामा का आदेश है कि मैं उनके लिए एक पृथक नाटक लिखूं।" |
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