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श्लोक 3.1.189  |
হ্রিযম্ অবগৃহ্য গৃহেভ্যঃ কর্ষতি রাধাṁ বনায যা নিপুণা
সা জযতি নিসৃষ্টার্থা বর-বṁশজ-কাকলী দূতী |
ह्रियमवगृह्य गृहेभ्यः कर्षति राधां वनाय या निपुणा ।
सा जयति निसृष्टार्था वर - वंशज - काकली दूती ॥189॥ |
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अनुवाद |
भगवान श्री कृष्ण की प्रामाणिक दूती बांसुरी की मधुर ध्वनि धन्य है, क्योंकि यह श्रीमती राधारानी के लज्जा के आवरण को कुशलतापूर्वक हटा देती है और उन्हें उनके घर से वन की ओर आकर्षित कर ले जाती है। |
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