श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 1: महाप्रभु से श्रील रूप गोस्वामी की द्वितीय भेट  »  श्लोक 189
 
 
श्लोक  3.1.189 
হ্রিযম্ অবগৃহ্য গৃহেভ্যঃ কর্ষতি রাধাṁ বনায যা নিপুণা
সা জযতি নিসৃষ্টার্থা বর-বṁশজ-কাকলী দূতী
ह्रियमवगृह्य गृहेभ्यः कर्षति राधां वनाय या निपुणा ।
सा जयति निसृष्टार्था वर - वंशज - काकली दूती ॥189॥
 
अनुवाद
भगवान श्री कृष्ण की प्रामाणिक दूती बांसुरी की मधुर ध्वनि धन्य है, क्योंकि यह श्रीमती राधारानी के लज्जा के आवरण को कुशलतापूर्वक हटा देती है और उन्हें उनके घर से वन की ओर आकर्षित कर ले जाती है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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