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श्लोक 2.9.165  |
প্রভুর বিযোগে ভট্ট হৈল অচেতন
এই রঙ্গ-লীলা করে শচীর নন্দন |
प्रभुर वियोगे भट्ट हैल अचेतन ।
एइ रङ्ग - लीला करे शचीर नन्दन ॥165॥ |
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अनुवाद |
जब वे चले गए, तो वेंकट भट्ट बेहोश होकर गिर पड़े। श्री रंगक्षेत्र में माँ शची के पुत्र श्री चैतन्य महाप्रभु के ऐसे ही लीला प्रसंग थे। |
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