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श्लोक 2.8.62  |
আজ্ঞাযৈবṁ গুণান্ দোষান্
মযাদিষ্টান্ অপি স্বকান্
ধর্মান্ সন্ত্যজ্য যঃ সর্বান্
মাṁ ভজেত্ স চ সত্তমঃ |
आज्ञायैवं गुणान्दोषान्मयादिष्टानपि स्वकान् ।
धर्मान्सन्त्यज्य यः सर्वान्मां भजेत्स च सत्तमः ॥62॥ |
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अनुवाद |
रामानन्द राय ने आगे कहा, "शास्त्रों में नियत कर्तव्यों का वर्णन हुआ है। उनका विश्लेषण करने पर उनके गुण - दोषों का पता चल सकता है। जब हमें उनकी पूर्ण समझ हो जाये तब उनका पूर्ण परित्याग करके पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की सेवा की जा सकती है। ऐसा व्यक्ति उच्च कोटि का माना जाता है।" |
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