কৃষ্ণ-লীলামৃত যদি লতাকে সিঞ্চয
নিজ-সুখ হৈতে পল্লবাদ্যের কোটি-সুখ হয
कृष्ण - लीलामृत यदि लताके सिञ्चय ।
निज - सुख हैते पल्लवाद्येर कोटि - सुख हय ॥210॥
अनुवाद
"जब कृष्ण लीला रूपी अमृत की फुहारें इस लता पर पड़ती हैं, तो टहनियों, फूलों, पत्तियों को मिलने वाला आनंद स्वयं लता द्वारा प्राप्त आनंद के मुकाबले दस लाख गुना ज्यादा होता है।"