श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 8: श्री चैतन्य महाप्रभु तथा श्री रामानन्द राय के बीच वार्तालाप  »  श्लोक 149
 
 
श्लोक  2.8.149 
অপরিকলিত-পূর্বঃ কশ্ চমত্কার-কারী
স্ফুরতি মম গরীযান্ এষ মাধুর্য-পূরঃ
অযম্ অহম্ অপি হন্ত প্রেক্ষ্য যṁ লুব্ধ-চেতাঃ
স-রভসম্ উপভোক্তুṁ কামযে রাধিকেব
अपरिकलित - पूर्वः कश्चमत्कार - कारी स्फुरति मम गरीयानेष माधुर्य - पूरः ।
अयमहमपि हन्त प्रेक्ष्य यं लुब्ध - चेताः स - रभसमुपभोक्तुं कामये राधिकेव ॥149॥
 
अनुवाद
“द्वारका के महल के एक रत्नजड़ित स्तंभ में अपनी परछाई देखकर कृष्ण ने उसे देखकर आलिंगन करना चाहा और कहा, "अरे, मैंने इससे पहले इतना सुन्दर व्यक्ति कभी नहीं देखा। यह कौन है? इसे देखकर ही मैं उससे गले मिलने के लिए उत्सुक हो रहा हूँ, बिलकुल श्रीमती राधारानी की तरह।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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