प्रेमावेशे हा सि’ कान्दि’ नृत्य - गीत कैल ।
देखि’ सर्व लोकेर चित्ते चमत्कार हैल ॥114॥
अनुवाद
जब तक श्री चैतन्य महाप्रभु इस स्थान पर रहे, तब तक वह परमात्मा के प्रति प्रेम भाव में डूबे रहे और हंसते, रोते, नाचते और कीर्तन करते रहे। जो कोई भी उन्हें देखता, अचंभित हो जाता।