श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 6: सार्वभौम भट्टाचार्य की मुक्ति  »  श्लोक 274
 
 
श्लोक  2.6.274 
যদ্যপি তোমার অর্থ এই শব্দে কয
তথাপি ‘আশ্লিষ্য-দোষে’ কহন না যায
यद्यपि तोमार अर्थ एइ शब्दे कय ।
तथापि ‘आश्लिष्य - दोषे’ कहन ना याय ॥274॥
 
अनुवाद
यद्यपि आपका स्पष्टीकरण सही है, किंतु ‘मुक्ति पद’ शब्द में अस्पष्टता होने के कारण इसका प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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