श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 6: सार्वभौम भट्टाचार्य की मुक्ति  »  श्लोक 220
 
 
श्लोक  2.6.220 
‘কৃষ্ণ’ ‘কৃষ্ণ’ স্ফুট কহি’ ভট্টাচার্য জাগিলা
কৃষ্ণ-নাম শুনি’ প্রভুর আনন্দ বাডিলা
‘कृष्ण’ ‘कृष्ण’ स्फुट कहि’ भट्टाचार्य जागिला ।
कृष्ण - नाम शुनि’ प्रभुर आनन्द बाड़िला ॥220॥
 
अनुवाद
सार्वभौम भट्टाचार्य ने जब उठते ही स्पष्ट रूप से "कृष्ण, कृष्ण" का उच्चारण किया, तो श्री चैतन्य महाप्रभु उनकी कृष्ण-नाम का जाप सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुए।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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