श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 6: सार्वभौम भट्टाचार्य की मुक्ति  »  श्लोक 159
 
 
श्लोक  2.6.159 
আনন্দাṁশে ‘হ্লাদিনী,’ সদ্-অṁশে ‘সন্ধিনী’
চিদ্-অṁশে ‘সম্বিত্’, যারে জ্ঞান করি মানি
आनन्दांशे ‘ह्लादिनी ,’ सदंशे ‘सन्धिनी’ ।
चिदंशे ‘सम्वित्’, यारे ज्ञान करि मानि ॥159॥
 
अनुवाद
“आध्यात्मिक शक्ति के तीन भाग ह्लादिनी [आनंद का हिस्सा], सन्धिनी [सत् का हिस्सा] और सम्वित [ज्ञान का हिस्सा] कहलाते हैं। हम इन तीनों के ज्ञान को पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के पूर्ण ज्ञान के रूप में स्वीकार करते हैं।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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