श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 6: सार्वभौम भट्टाचार्य की मुक्ति  »  श्लोक 100
 
 
श्लोक  2.6.100 
প্রতিযুগে করেন কৃষ্ণ যুগ-অবতার
তর্ক-নিষ্ঠ হৃদয তোমার নাহিক বিচার
प्रतियुगे करेन कृष्ण युग - अवतार ।
तकर् - निष्ठ हृदय तोमार नाहिक विचार ॥100॥
 
अनुवाद
गोपीनाथ आचार्य ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "हर युग में अवश्य ही एक अवतार होता है, और ऐसे अवतार को युग-अवतार कहा जाता है। परन्तु तर्क और विवाद के कारण तुम्हारा हृदय इतना कठोर हो गया है कि तुम इन सभी तथ्यों पर विचार ही नहीं कर सकते।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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