श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 4: श्री माधवेन्द्र पुरी की भक्ति  »  श्लोक 180
 
 
श्लोक  2.4.180 
হেন-জন গোপালের আজ্ঞামৃত পাঞা
সহস্র ক্রোশ আসি’ বুলে চন্দন মাগিঞা
हेन - जन गोपालेर आज्ञामृत पाञा ।
सहस्त्र क्रोश आ सि’ बुले चन्दन मागिञा ॥180॥
 
अनुवाद
गोपालजी के दिव्य निर्देश मिलने पर इस महान व्यक्तित्व ने भीख मांग कर चंदन इकट्ठा करने के लिए हजारों मील की यात्रा की।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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