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श्लोक 2.3.80  |
আজি উপবাস হৈল আচার্য-নিমন্ত্রণে
অর্ধ-পেট না ভরিবে এই গ্রাসেক অন্নে |
आजि उपवास हैल आचार्य - निमन्त्रणे ।
अर्ध - पेट ना भरिबे एइ ग्रासेक अन्ने ॥80॥ |
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अनुवाद |
यहाँ श्री चैतन्य महाप्रभु जहाँ ये सोच रहे थे कि भोजन की मात्रा बहुत ज्यादा है वहीँ नित्यानंद प्रभु ने सोचा कि यह तो एक निवाला भी नहीं है। वे तीन दिन से उपवास कर रहे थे और उन्हें पूरी उम्मीद थी कि आज वे उपवास खोलेंगे। उन्होंने कहा कि “हालाँकि मुझे अद्वैत आचार्य ने खाने के लिए बुलाया है लेकिन आज भी मेरा उपवास है। इतने कम भोजन से तो मेरा आधा पेट भी नहीं भरेगा।” |
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