श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 3: श्री चैतन्य महाप्रभु का अद्वैत आचार्य के घर रुकना  »  श्लोक 77
 
 
श्लोक  2.3.77 
মোর ভাগ্যে, মোর ঘরে, তোমার আগমন
ছাডহ চাতুরী, প্রভু, করহ ভোজন
मोर भाग्ये, मोर घरे, तोमार आगमन ।
छाड़ह चातुरी, प्रभु, करह भोजन ॥77॥
 
अनुवाद
अद्वैत आचार्य ने आगे कहा, "यह मेरा महान सौभाग्य है कि आप मेरे घर आये हैं। कृपा करके बातचीत मत करिए। बातें बंद करके खाना शुरू कर दीजिए।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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