কোন্ স্থানে বসিব, আর আন দুই পাত
অল্প করি’ আনি’ তাহে দেহ ব্যঞ্জন ভাত
कोन् स्थाने वसिब, आर आन दुइ पात ।
अल्प क रि’ आनि’ ताहे देह व्यञ्जन भात ॥68॥
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु ने समझा कि तीनों थालियाँ वितरण के लिए ही हैं, इसलिए उन्होंने यह कहते हुए और दो केले के पत्ते माँगे, "हमें थोड़ी तरकारी और चावल ही दें।"