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अध्याय 3: श्री चैतन्य महाप्रभु का अद्वैत आचार्य के घर रुकना
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श्लोक 38
श्लोक
2.3.38
প্রেমাবেশে তিন দিন আছ উপবাস
আজি মোর ঘরে ভিক্ষা, চল মোর বাস
प्रेमावेशे तिन दिन आछ उपवास ।
आजि मोर घरे भिक्षा, चल मोर वास ॥38॥
अनुवाद
अद्वैत आचार्य ने कहा, "कृष्ण के प्रति प्रेम के आवेश में तुमने अब तक लगातार तीन दिन तक उपवास किया है। मैं तुम्हें अपने घर भिक्षा लेने का आमंत्रण देता हूँ। तुम मेरे साथ मेरे घर चलो।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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