श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 3: श्री चैतन्य महाप्रभु का अद्वैत आचार्य के घर रुकना  »  श्लोक 195
 
 
श्लोक  2.3.195 
মুঞি অধম তোমার না পাব দরশন
কেমতে ধরিব এই পাপিষ্ঠ জীবন
मुञि अधम तोमार ना पाब दरशन ।
केमते धरिब एइ पापिष्ठ जीवन ॥195॥
 
अनुवाद
"चूँकि मैं सबसे निम्न कोटि का हूँ, इसलिए मैं आपका दर्शन नहीं पा सकूँगा। मैं कैसे अपने पापमय जीवन को जीवित रखूँ?"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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