श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 3: श्री चैतन्य महाप्रभु का अद्वैत आचार्य के घर रुकना  »  श्लोक 132
 
 
श्लोक  2.3.132 
এই মত প্রহরেক নাচে প্রভু রঙ্গে
কভু হর্ষ, কভু বিষাদ, ভাবের তরঙ্গে
एइ मत प्रहरेक नाचे प्रभु रङ्गे ।
कभु हर्ष, कभु विषाद, भावेर तरङ्गे ॥132॥
 
अनुवाद
इस तरह महाप्रभु कम से कम तीन घंटे तक नृत्य करते रहे। कभी-कभी उनमें हर्ष, विषाद और अन्य भावों की अनेक लहरें स्पष्ट रूप से दिखाई देती थीं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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