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अध्याय 3: श्री चैतन्य महाप्रभु का अद्वैत आचार्य के घर रुकना
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श्लोक 117
श्लोक
2.3.117
অনেক দিন তুমি মোরে বেডাইলে ভাণ্ডিযা
ঘরেতে পাঞাছি, এবে রাখিব বান্ধিযা
अनेक दिन तुमि मोरे बेड़ाइले भाण्डिया ।
घरेते पा ञाछि, एबे राखिब बान्धिया ॥117॥
अनुवाद
श्री अद्वैत आचार्य ने कहा, "आपने मुझे बहला-फुसलाकर कई दिन तक बचाया। अब आप मेरे घर आ गए हैं और मैं आपको बांधकर रखूँगा।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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