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श्लोक 2.3.107  |
তবে ত’ আচার্য সঙ্গে লঞা দুই জনে
করিল ইচ্ছায ভোজন, যে আছিল মনে |
तबे त’ आचार्य सङ्गे लञा दुइ जने ।
करिल इच्छाय भोजन, ये आछिल मने ॥107॥ |
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अनुवाद |
इसके बाद अद्वैत आचार्य ने मुकुन्द और हरिदास के साथ प्रसाद लिया और तीनों ने इच्छानुसार भरपूर भोजन किया। |
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