श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 3: श्री चैतन्य महाप्रभु का अद्वैत आचार्य के घर रुकना  »  श्लोक 107
 
 
श्लोक  2.3.107 
তবে ত’ আচার্য সঙ্গে লঞা দুই জনে
করিল ইচ্ছায ভোজন, যে আছিল মনে
तबे त’ आचार्य सङ्गे लञा दुइ जने ।
करिल इच्छाय भोजन, ये आछिल मने ॥107॥
 
अनुवाद
इसके बाद अद्वैत आचार्य ने मुकुन्द और हरिदास के साथ प्रसाद लिया और तीनों ने इच्छानुसार भरपूर भोजन किया।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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