श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 3: श्री चैतन्य महाप्रभु का अद्वैत आचार्य के घर रुकना  »  श्लोक 103
 
 
श्लोक  2.3.103 
লবঙ্গ এলাচী-বীজ — উত্তম রস-বাস
তুলসী-মঞ্জরী সহ দিল মুখ-বাস
लवङ्ग एलाची - बीज - उत्तम रस - वास ।
तुलसी - मञ्जरी सह दिल मुख - वास ॥103॥
 
अनुवाद
श्री अद्वैत आचार्य ने दोनों प्रभुओं को लौंग तथा इलायची के साथ तुलसी की पत्तियों का सेवन करवाया। इस तरह उनके मुँह में बढ़िया स्वाद आया।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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