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श्लोक 2.24.84  |
রাগ-ভক্তি-বিধি-ভক্তি হয দুই-রূপ
‘স্বযṁ-ভগবত্ত্বে’, ভগবত্ত্বে — প্রকাশ দ্বি-রূপ |
राग - भक्ति - विधि - भक्ति हय दुड़ - रूप ।
‘स्वयं - भगवत्त्वे’, भगवत्त्वे - प्रकाश द्वि - रूप ॥84॥ |
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अनुवाद |
“भक्ति दो प्रकार की होती है—स्वाभाविक और वैधिक। स्वाभाविक भक्ति से व्यक्ति मूल भगवान कृष्ण को प्राप्त करता है और वैधिक भक्ति प्रक्रिया से व्यक्ति भगवान के विस्तार रूप को प्राप्त करता है।” |
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