श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 24: आत्माराम श्लोक की 61 व्याख्याएँ  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  2.24.45 
তস্যারবিন্দ-নযনস্য পদারবিন্দ-
কিঞ্জল্ক-মিশ্র-তুলসী-মকরন্দ-বাযুঃ
অন্তর্-গতঃ স্ব-বিবরেণ চকার তেষাṁ
সঙ্ক্ষোভম্ অক্ষর-জুষাম্ অপি চিত্ত-তন্বোঃ
तस्यारविन्द - नयनस्य पदारविन्द - किञ्जल्क - मिश्र - तुलसी - मकरन्द - वायुः ।
अन्तर्गतः स्व - विवरेण चकार तेषां सङ्क्षोभमक्षर - जुषामपि चित्त - तन्वोः ॥45॥
 
अनुवाद
“जब कमलनयन भगवान् के चरणकमलों से तुलसी - दल तथा केसर की सुगंधित वायु कुमारों के नासिका द्वारा हृदयों में प्रवेश करी, तो वे निराकार ब्रह्म की अवधारणा के प्रति आसक्त होने के बावजूद, शरीर और मन में परिवर्तन अनुभव किया।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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