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श्लोक 2.24.355  |
শ্রী-রূপ-রঘুনাথ-পদে যার আশ
চৈতন্য-চরিতামৃত কহে কৃষ্ণদাস |
श्री - रूप - रघुनाथ - पदे यार आश ।
चैतन्य - चरितामृत कहे कृष्णदास ॥355॥ |
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अनुवाद |
श्री रूप और श्री रघुनाथ के चरणकमलों में प्रणाम करते हुए और उनकी कृपा की अभिलाषा से ही उनके पद-चिह्नों पर चलते हुए मैं, कृष्णदास, श्रीचैतन्य-चरितामृत नामक इस ग्रंथ का वर्णन कर रहा हूँ। श्रीचैतन्य-चरितामृत की मध्यलीला के चौबीसवें अध्याय का भक्तिवेदान्त। |
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इस प्रकार श्री चैतन्य-चरितामृत, मध्य लीला, के अंतर्गत चौबीसवाँ अध्याय समाप्त होता है । |
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