श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 24: आत्माराम श्लोक की 61 व्याख्याएँ » श्लोक 28 |
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| | श्लोक 2.24.28  | এক ভুক্তি কহে, ভোগ — অনন্ত-প্রকার
সিদ্ধি — অষ্টাদশ, মুক্তি — পঞ্চ-বিধাকার | एक भुक्ति कहे, भोग - अनन्त - प्रकार ।
सिद्धि - अष्टादश, मुक्ति - पञ्च - विधाकार ॥28॥ | | अनुवाद | “सर्वप्रथम हम ‘भुक्ति’ (भौतिक भोग) शब्द लेते हैं। यह भुक्ति अनन्त प्रकार की होती है। हम ‘सिद्धि’ शब्द को भी ले सकते हैं, जिसमें अठारह प्रकार की होती हैं। इसी तरह ‘मुक्ति’ शब्द के पाँच प्रकार हैं।” | | |
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