श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 24: आत्माराम श्लोक की 61 व्याख्याएँ » श्लोक 272 |
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| | श्लोक 2.24.272  | নারদ কহে, — “ব্যাধ, এই না হয আশ্চর্য
হরি-ভক্ত্যে হিṁসা-শূন্য হয সাধু-বর্য | नारद कहे , - “व्याध, एइ ना हय आश्चर्य ।
हरि - भक्त्ये हिंसा शून्य हय साधु - वर्य ॥272॥ | | अनुवाद | नारद मुनि ने कहा, ‘हे शिकारी, ऐसा व्यवहार रत्ती भर भी आश्चर्यजनक नहीं है। भक्ति भाव में मनुष्य अपने आप अहिंसक हो जाता है। वह सज्जन पुरुषों में सबसे उत्तम होता है।’ | | |
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