श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 24: आत्माराम श्लोक की 61 व्याख्याएँ  »  श्लोक 253
 
 
श्लोक  2.24.253 
ব্যাধ কহে, — “বাল্য হৈতে এই আমার কর্ম
কেমনে তরিমু মুঞি পামর অধম?
व्याध कहे , - “बाल्य हैते एइ आमार कर्म ।
केमने तरिमु मुञि पामर अधम ?” ॥253॥
 
अनुवाद
शिकारी ने स्वीकार किया कि उसके द्वारा पापकर्म हुए हैं। तब उसने कहा, ‘बचपन से ही मुझे इस पेशे का प्रशिक्षण दिया गया। अब मैं सोच रहा हूँ कि मैं इन अनगिनत पापकर्मों से मुक्ति कैसे पा सकता हूँ।’
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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