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श्लोक 237
श्लोक
2.24.237
ক্রুদ্ধ হঞা ব্যাধ তাঙ্রে গালি দিতে চায
নারদ-প্রভাবে মুখে গালি নাহি আয
क्रुद्ध हञा व्याध ताँरे गालि दिते चाय ।
नारद - प्रभावे मुखे गालि नाहि आय ॥237॥
अनुवाद
जब सभी जानवर भाग गए, तो शिकारी नारद को गालियाँ देकर सज़ा देना चाहता था, किंतु नारद की उपस्थिति के कारण वह एक भी गाली नहीं दे सका।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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