श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 24: आत्माराम श्लोक की 61 व्याख्याएँ  »  श्लोक 217
 
 
श्लोक  2.24.217 
যত্-পাদ-সেবাভিরুচিস্ তপস্বিনাম্
অশেষ-জন্মোপচিতṁ মলṁ ধিযঃ
সদ্যঃ ক্ষিণোত্য্ অন্ব্-অহম্ এধতী সতী
যথা পদাঙ্গুষ্ঠ-বিনিঃসৃতা সরিত্
यत्पाद - सेवाभिरुचिस्तपस्विनाम् अशेष - जन्मोपचितं मलं धियः ।
सद्यः क्षिणोत्यन्वहमेधती सती यथा पदाङ्गुष्ठ - विनिःसृता सरित् ॥217॥
 
अनुवाद
"प्रेमभक्ति का स्वाद गंगा नदी के पानी जैसा है जो भगवान श्री कृष्ण के चरणों से निकलता है। जो लोग तपस्या करते है, उनके द्वारा पूर्व जन्मों में किये गए पाप कर्मों के फल में से कुछ न कुछ फल प्रतिदिन घटता रहता है।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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