‘जब जीव कृष्ण से अलग भौतिक शक्ति की ओर आकर्षित होता है, तो वह भयाक्रान्त हो जाता है। चूँकि उसे भौतिक शक्ति ने पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् से अलग कर दिया है, इसलिए उसके जीवन का नजरिया उलट गया है। दूसरे शब्दों में, वह कृष्ण का शाश्वत सेवक बनने के बजाय कृष्ण का प्रतिद्वंद्वी बन जाता है। इसे विपर्ययः अस्मृतिः कहते हैं। इस गलती को दूर करने के लिए जो मनुष्य सचमुच विद्वान और उन्नत होता है, वह पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की पूजा अपने गुरु, पूजनीय देवता और जीवन के स्रोत के रूप में करता है। वह इस तरह अनन्य भक्ति की विधि से भगवान् की पूजा करता है।’ |