श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 24: आत्माराम श्लोक की 61 व्याख्याएँ  »  श्लोक 137
 
 
श्लोक  2.24.137 
ভযṁ দ্বিতীযাভিনিবেশতঃ স্যাদ্
ঈশাদ্ অপেতস্য বিপর্যযো ’স্মৃতিঃ
তন্-মাযযাতো বুধ আভজেত্ তṁ
ভক্ত্যৈকযেশṁ গুরু-দেবতাত্মা
भयं द्वितीयाभिनिवेशतः स्याद् ईशादपेतस्य विपर्ययोऽस्मृतिः ।
तन्माययातो बुध आभजेत्तं भक्त्यैकयेशं गुरु - देवतात्मा ॥137॥
 
अनुवाद
‘जब जीव कृष्ण से अलग भौतिक शक्ति की ओर आकर्षित होता है, तो वह भयाक्रान्त हो जाता है। चूँकि उसे भौतिक शक्ति ने पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् से अलग कर दिया है, इसलिए उसके जीवन का नजरिया उलट गया है। दूसरे शब्दों में, वह कृष्ण का शाश्वत सेवक बनने के बजाय कृष्ण का प्रतिद्वंद्वी बन जाता है। इसे विपर्ययः अस्मृतिः कहते हैं। इस गलती को दूर करने के लिए जो मनुष्य सचमुच विद्वान और उन्नत होता है, वह पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की पूजा अपने गुरु, पूजनीय देवता और जीवन के स्रोत के रूप में करता है। वह इस तरह अनन्य भक्ति की विधि से भगवान् की पूजा करता है।’
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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