श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 23: जीवन का चरम लक्ष्य -भगवत्प्रेम  »  श्लोक 93
 
 
श्लोक  2.23.93 
এই-মত দাস্যে দাস, সখ্যে সখা-গণ
বাত্সল্যে মাতা পিতা আশ্রযালম্বন
एइ - मत दास्ये दास, सख्ये सखा - गण ।
वात्सल्ये माता पिता आश्रयालम्बन ॥93॥
 
अनुवाद
“जिस प्रकार भगवान् कृष्ण तथा श्रीमती राधारानी माधुर्य-प्रेम के आलम्बन तथा आश्रय हैं, उसी तरह दास्य रस में महाराज नन्द के पुत्र आलम्बन हैं तथा चित्रक, पत्रक एवं रक्तक जैसे दास आश्रय हैं। इसी तरह दिव्य सख्य रस में भगवान् कृष्ण आलम्बन हैं तथा श्रीदामा, सुदामा व सुबल जैसे मित्र आश्रय हैं। दिव्य वात्सल्य रस में कृष्ण आलम्बन हैं और माता यशोदा एवं महाराज नन्द आश्रय हैं।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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