श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 23: जीवन का चरम लक्ष्य -भगवत्प्रेम  »  श्लोक 63
 
 
श्लोक  2.23.63 
‘বিপ্রলম্ভ’ চতুর্-বিধ — পূর্ব-রাগ, মান
প্রবাসাখ্য, আর প্রেম-বৈচিত্ত্য-আখ্যান
‘विप्रलम्भ’ चतुर्विध - पूर्व - राग, मान ।
प्रवासाख्य, आर प्रेम - वैचित्य - आख्यान ॥63॥
 
अनुवाद
"विप्रलम्भ के चार विभाग हैं - पूर्व - राग, मान, प्रवास और प्रेमवैचित्त्य।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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