श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 98
 
 
श्लोक  2.22.98 
অহো বকী যṁ স্তন-কাল-কূটṁ
জিঘাṁসযাপাযযদ্ অপ্য্ অসাধ্বী
লেভে গতিṁ ধাত্র্য্-উচিতাṁ ততো ’ন্যṁ
কṁ বা দযালুṁ শরণṁ ব্রজেম
अहो बकी यं स्तन - काल - कूटं जिघांसयापाययदप्यसाध्वी ।
लेभे गतिं धात्र्युचितां ततोऽन्यं कं वा दयालु शरणं व्रजेम ॥98॥
 
अनुवाद
“यह कैसा विस्मयकारी खेल है की बकासुर की बहन पूतना अपने स्तनों पर घातक ज़हर लगाकर श्री कृष्ण को पिलाकर मारना चाहती थी। मगर भगवान श्री कृष्ण के द्वारा उसे माँ स्वरूप में स्वीकार कर लिया गया था और उसने कृष्ण की माँ के योग्य गति भी प्राप्त की। तो फिर मैं श्री कृष्ण की शरण कैसे न लूँ जो सबसे अधिक दयालु हैं?”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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