श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 91
 
 
श्लोक  2.22.91 
বরṁ হুত-বহ-জ্বালা-
পঞ্জরান্তর্-ব্যবস্থিতিঃ
ন শৌরি-চিন্তা-বিমুখ-
জন-সṁবাস-বৈশসম্
वरं हुत - वह - ज्वाला - पञ्जरान्तर्व्यवस्थितिः ।
न शौरि - चिन्ता - विमुख - जन - संवास - वैशसम् ॥91॥
 
अनुवाद
“पिंजरे में बंद हो जाना और जलती हुई आग से घिरे रहना, कृष्णभावना से रहित लोगों की संगति करने से कहीं अच्छा है। ऐसी संगति एक बहुत बड़ी विपत्ति है।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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