श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 9 |
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| | श्लोक 2.22.9  | স্বাṁশ-বিস্তার — চতুর্-ব্যূহ, অবতার-গণ
বিভিন্নাṁশ জীব — তাঙ্র শক্তিতে গণন | स्वांश - विस्तार - चतुर्व्यूह, अवतार - गण ।
विभिन्नांश जीव - ताँर शक्तिते गणन ॥9॥ | | अनुवाद | उनके स्वयं का विस्तार—जैसे चतुर्भुज प्रकटन, संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध और वासुदेव—वैकुंठ से इस भौतिक दुनिया में अवतार के रूप में उतरते हैं। अलग-अलग विस्तार जीव हैं। हालाँकि वे कृष्ण का विस्तार हैं, फिर भी उन्हें उनकी विभिन्न शक्तियों में गिना जाता है। | | |
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