श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 87 |
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| | श्लोक 2.22.87  | অসত্-সঙ্গ-ত্যাগ, — এই বৈষ্ণব-আচার
‘স্ত্রী-সঙ্গী’ — এক অসাধু, ‘কৃষ্ণাভক্ত’ আর | असत्सङ्ग - त्याग, - एइ वैष्णव - आचार ।
‘स्त्री - सङ्गी’ - एक असाधु, ‘कृष्णाभ क्त’ आर ॥87॥ | | अनुवाद | वैष्णव को हमेशा साधारण लोगों की संगति से दूर रहना चाहिए। साधारण लोग भौतिक सुखों, विशेषकर स्त्रियों के प्रति बहुत आसक्त रहते हैं। वैष्णवों को उन लोगों की संगति से भी बचना चाहिए जो कृष्ण भक्त नहीं हैं। | | |
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