श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 86
 
 
श्लोक  2.22.86 
সতাṁ প্রসঙ্গান্ মম বীর্য-সṁবিদো
ভবন্তি হৃত্-কর্ণ-রসাযনাঃ কথাঃ
তজ্-জোষণাদ্ আশ্ব্ অপবর্গ-বর্ত্মনি
শ্রদ্ধা রতির্ ভক্তির্ অনুক্রমিষ্যতি
सतां प्रसङ्गान्मम वीर्य - संविदो भवन्ति हृत्कर्ण - रसायनाः कथाः ।
तज्जोषणादाश्वपवर्ग - वर्त्मनि श्रद्धा रतिर्भक्तिरनुक्रमिष्यति ॥86॥
 
अनुवाद
"ईश्वरीय शक्ति का आध्यात्मिक रूप से प्रभावशाली सन्देश केवल भक्तों के समाज में ही उचित रूप से चर्चा का विषय बन सकता है, तथा भक्तों के संग में इसे सुनना अत्यंत प्रिय लगता है। यदि भक्तों से सुना जाए, तो दिव्य अनुभव का मार्ग तुरंत खुल जाता है और धीरे-धीरे दृढ़ श्रद्धा उत्पन्न होती है, जो कि समय के साथ आकर्षण और भक्ति में बदल जाती है।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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