श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 76
 
 
श्लोक  2.22.76 
যস্যাস্তি ভক্তির্ ভগবত্য্ অকিঞ্চনা
সর্বৈর্ গুণৈস্ তত্র সমাসতে সুরাঃ
হরাব্ অভক্তস্য কুতো মহদ্-গুণা
মনো-রথেনাসতি ধাবতো বহিঃ
यस्यास्ति भक्तिर्भगवत्यकिञ्चना सर्वैर्गुणैस्तत्र समासते सुराः ।
हरावभक्तस्य कुतो महद्गुणा मनो - रथेनासति धावतो बहिः ॥76॥
 
अनुवाद
"कृष्ण में जिस व्यक्ति की दृढ़ भक्तिभाव से भरी श्रद्धा होती है, उसमें कृष्ण और देवताओं के सभी अच्छे गुण लगातार प्रकट होते हैं। लेकिन जिस व्यक्ति में पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के प्रति कोई भक्ति नहीं है, उसमें कोई अच्छाई नहीं है, क्योंकि वह भौतिक संसार में मानसिक कल्पना में लगा रहता है, जो भगवान का बाहरी रूप है।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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