"प्राकृत अथवा भौतिकतावादी भक्त शास्त्रों का जानबुझकर अध्ययन नहीं करता और न ही शुद्ध भक्ति के वास्तविक स्वरूप को समझने का प्रयास करता है। परिणामस्वरूप वह उन्नत भक्तों के प्रति उचित सम्मान नहीं दिखाता। हालांकि, वह अपने गुरु या पूजा करने वाले अपने परिवार से सीखे हुए नियमों का पालन कर सकता है। उसे भौतिक स्तर पर ही माना जाना चाहिए, भले ही वह भक्ति में प्रगति करने का प्रयास कर रहा हो। ऐसा व्यक्ति भक्त प्राय (नया भक्त) या भक्ताभास होता है, क्योंकि उसे वैष्णव दर्शन का थोड़ा ज्ञान हो जाता है।" |