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श्लोक 2.22.71  |
রতি-প্রেম-তারতম্যে ভক্ত — তর-তম
একাদশ স্কন্ধে তার করিযাছে লক্ষণ |
रति - प्रेम - तारतम्ये भक्त - तर - तम ।
एकादश स्कन्धे तार करियाछे लक्षण ॥71॥ |
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अनुवाद |
भक्त की श्रेष्ठता और श्रेष्ठतमता उसकी अनुरक्ति और प्रेम पर निर्भर करती है। श्रीमद्भागवत के ग्यारहवें स्कन्ध में भक्ति के लक्षणों को निश्चित किया गया है। |
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